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Sitaare Zameen Par Review: खूबसूरत मैसेज के साथ दिल में उतरती है फिल्म, बेहतरीन है आमिर का काम

Sitaare Zameen Par Review: खूबसूरत मैसेज के साथ दिल में उतरती है फिल्म, बेहतरीन है आमिर का काम

Sitaare Zameen Par Review: फिल्म का उद्देश्य ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम जैसी स्थितियों को गहराई से समझाना नहीं है, बल्कि यह दिखाना है कि जो लोग हमसे अलग हैं, उन्हें भी इंसान की तरह समझा और अपनाया जाना चाहिए।

Sitaare Zameen Par Review In Hindi: ‘सितारे ज़मीन पर’ (Sitaare Zameen Par) उन फिल्मों में से एक है, जिन्हें देखकर दिल, दिमाग पर हावी हो जाता है। तकनीकी नजर, स्क्रीनप्ले और अभिनय का विश्लेषण करना आमतौर पर हर रिव्यूअर का काम होता है, लेकिन कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो दिल से देखी जाती हैं और ‘सितारे ज़मीन पर’ उन्हीं में से एक है।

संवेदनशील विषय पर आधारित सशक्त कहानी

फिल्म बौद्धिक अक्षमता वाले लोगों के जीवन और समाज में उनके साथ होने वाले व्यवहार पर सवाल उठाती है। यह कहानी है गुलशन अरोड़ा (आमिर खान) की, जो एक बास्केटबॉल कोच है और जिंदगी से भागने का आदी है। कोर्ट के आदेश पर उसे तीन महीने के लिए बौद्धिक अक्षमता से ग्रसित युवाओं की टीम को कोचिंग देनी पड़ती है। शुरुआत में असहजता और असंवेदनशीलता दिखाने वाला गुलशन धीरे-धीरे बदलता है, और यहीं से फिल्म दिल को छूने लगती है।

फिल्म का मूल संदेश: अलग होने का मतलब असामान्य नहीं

फिल्म का उद्देश्य ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम जैसी स्थितियों को गहराई से समझाना नहीं है, बल्कि यह दिखाना है कि जो लोग हमसे अलग हैं, उन्हें भी इंसान की तरह समझा और अपनाया जाना चाहिए। एक सीन में कोच गुलशन एक लड़के के नहाने के डर को दूर करता है, और यह दृश्य बेहद खूबसूरत लगता है। गुलशन जहां अपने खिलाड़ियों को खेल सिखाता है, वहीं वह खुद जीवन जीने का नजरिया सीखता है।

इमोशन और कॉमेडी का संतुलित मिश्रण

‘सितारे ज़मीन पर’ (Sitaare Zameen Par) केवल भावनाओं का प्रवाह नहीं है, इसमें भरपूर हास्य भी है। फिल्म के संवाद और पंच बहुत चटपटे हैं, जो गंभीर विषय के बीच भी दर्शकों को हल्कापन महसूस कराते हैं। जब भी फिल्म थोड़ी धीमी लगती है, कोई हल्का-फुल्का दृश्य उसे संतुलन में ले आता है।

आमिर खान की परफॉर्मेंस फिर से दिल जीत लेती है

आमिर खान की अभिनय क्षमता पर कभी संदेह नहीं रहा, लेकिन इस फिल्म में उनकी परफॉर्मेंस विशेष रूप से दिल को छू लेने वाली है। खासतौर पर फिल्म के अंतिम हिस्से में उनका एक भावनात्मक मोनोलॉग लंबे समय तक याद रहेगा।

असल जीवन से जुड़े कलाकारों की अद्भुत प्रस्तुति

फिल्म में गुलशन के साथ नजर आने वाले कलाकार कोई पेशेवर एक्टर नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन में बौद्धिक अक्षमता से जूझ रहे लोग हैं। आरुष दत्ता, गोपी कृष्णन, सिमरन मंगेशकर, आयुष भंसाली जैसे कलाकारों का अभिनय बेहद प्रभावशाली है। डॉली अहलुवालिया और ब्रिजेन्द्र काला जैसे अनुभवी कलाकार भी अपने सीमित लेकिन यादगार किरदारों से छाप छोड़ते हैं।

कमजोरियां जो फिल्म को और खूबसूरत बनाती हैं

फिल्म की रफ्तार कुछ जगह थोड़ी धीमी लगती है। गुलशन की मां से जुड़ा सब-प्लॉट थोड़ा अनावश्यक लगता है। लेकिन इन खामियों को कलाकारों का अभिनय और कहानी की संवेदनशीलता ढक लेती है। हर बार जब ये कलाकार स्क्रीन पर आते हैं, तो फिल्म एक नई ऊर्जा ले आती है।

एक अधूरी परफेक्शन, लेकिन पूरी आत्मा वाली फिल्म

आमिर खान को अक्सर ‘परफेक्शनिस्ट’ कहा जाता है, मगर ‘सितारे ज़मीन पर’ (Sitaare Zameen Par) में उन्होंने यह दिखाया है कि हर फिल्म को परफेक्ट नहीं होना चाहिए, उसका दिल सही जगह पर होना चाहिए। एक निर्माता के तौर पर आमिर का इस कहानी के साथ खड़ा होना उनकी संवेदनशीलता और सामाजिक जिम्मेदारी का प्रमाण है।

‘सितारे ज़मीन पर’ (Sitaare Zameen Par) कोई परफेक्ट फिल्म नहीं है, लेकिन यह वो फिल्म है जो आपको भीतर से बदल देती है। आमिर खान की यह पेशकश आपको सोचने पर मजबूर करती है और यही इसकी सबसे बड़ी जीत है।

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